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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।

16


अंजना जब मंदिर से लौटी तो सदर हाल में वार्ता की आवाज़ों को सुनकर एक क्षण के लिए वह रुक गई। सामने कमल की जीप खड़ी थी। उसकी उपस्थिति का आभास करते ही वह कांप गई। अंग-अंग में एक सिहरन-सी दौड़ गई। आज उसका सामना करते हुए वह भयभीत हो रही थी। उससे अपना जीवन-रहस्य खोलने के बाद वह पहली बार उसका सामना करने जा रही थी और यह उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा इम्तहान था!

अभी वह इसी असमंजस में उलझी हुई थी कि किसी आवाज ने उसे चौंका दिया। यह आवाज शालिनी की थी जिसने उसे देख लिया था और तेजी से उसकी ओर बढ़ती आ रही थी। वह पास आई और उसे अपनी बांहों में भर लिया। वह संवेदनाहीन-सी उसके साथ अन्दर चली गई। अन्दर कमल और लालाजी में गाढ़ी छन रही थी।

अंजना को देखते ही वह बात करते-करते तनिक ठुमक गया। कमल की ओर देखते ही वह भी झेंप गई। कमल ने गहरी निगाहों से अंजना को देखा और फिर मुस्करा दिया। अंजना को आभास हुआ जैसे इस एक ही निगाह में उसने अपने दिल की बात समझा दी हो।

अंजना ने नमस्कार के लिए हाथ जोड़े, लेकिन कमल ने मद्धिम आवाज में कहा-''हलो!''

राम जाने आज इस 'हलो' में क्या कुछ था जिसे सुनकर अंजना के शरीर में झुरझुरी-सी दौड़ गई और वह लहरा उठी। उसने आगे बढ़कर बाबूजी के पैर छुए और मन्दिर से लाया प्रसाद उनकी ओर बढ़ाया। लालाजी ने हाथ फैला दिया और बहू की ओर देखने लगे।

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