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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


अंजना कभी स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थी कि कमल उस पत्र के बाद इतना निकट आ जाएगा; वह उसके दिल के दर्द को इस हद तक बांट लेगा; वह उसकी परेशानियों को इतनी आसानी से अपना लेगा। उसे अब अपने आप पर, अपनी जिंदगी पर भरोसा होने लगा। उसमें बड़ी से बड़ी कठिनाई का सामना करने का साहस आ गया।

तीनों जब रेस्तरां के बाहरी भाग में बैठे चाय पी रहे थे तो एक शाल-दुशाले बेचने वाला उनके निकट आया और उन्हें बार-बार देखने के लिए मजबूर करने लगा। न जाने क्या सोचकर अंजना ने एक स्लेटी रंग के दुशाले को दिखाते हुए पूछा-''कितने का है?''

''तीन सौ रुपये, मेम साहब!''

''बहुत ज़्यादा हैं।''

''माल भी तो ऐसा है मेम साहब! ले लीजिए। असली पश्मीने का है।''

''क्या करोगी?'' शालिनी ने प्रश्न किया।

''यों ही, सोचा, बाबूजी के लिए ले लूं।''

''ठीक है।'' कमल ने कपड़े को उंगलियों से परखते हुए देखा।

''आपको पसंद है?'' अंजना ने पूछा।

''क्यों नहीं और बाबूजी यह देखकर तो फूले नहीं समाएंगे कि उनकी बहू कितना ख्याल रखती है उनका!''

शालिनी की यह बात अंजना के दिल पर आ लगी। क्षण-भर के लिए उसने सोचा और फिर वह दुशाला खरीद लिया गया।

आज जीवन में पहली बार उसने बाबूजी के लिए कुछ खरीदा था। उसने जब कनखियों से बहन-भाई की ओर देखा उसके चेहरे पर एक लाली दौड़ गई।

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