उपन्यास >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''तब?''
''मेरे घरवालों ने इंकार कर दिया था।''
''क्यों?''
''उसका चालचलन और आवारगी देखकर।''
अंजना ने भावुकता से परास्त होकर दिल की बात कह दी और फिर जल्दी से दीवार में लगी अलमारी की ओर बढ़ी और उनके लिए दवा की शीशी निकालने लगी। वे चुपचाप बैठे उसे निहारते रहे।
अंजना ने दवा की शीशी खोली और एक खुराक प्याले में उंडेलकर उनकी ओर बढ़ा दिया।
''अपनी तो ज़िंदगी बस दो-चार दवाइयों में अटककर रह गई है।''
''नहीं, ऐसा मत कहिए।''
''यथार्थ से मुंह कैसे छिपा लूं बहू? अब तो जीवन एक बोझ-सा लगने लगा है। न जाने कब और किस समय दम निकल जाए।''
अंजना ने बहस नहीं की। दवा की शीशी बन्द करके अलमारी में वापस रख दी और बात बदलते हुए बोली- ''दूध कितनी देर बाद लाऊं?''
''कहा ना, आज मन नहीं है।''
''खाली पेट सोना भी तो अच्छा नहीं आपके लिए! थोड़ी देर बाद आऊंगी।''
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