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उपन्यास >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''क्यों?''

''कहीं वह पाजी फिर न आ जाए।''

''कौन?''

''आपका रिश्तेदार, बनवारी।''

अंजना ने देखा, यह नाम लेते समय उसके अधरों पर एक व्यंग्यात्मक मुस्कान उभर आई। उसने मालकिन की ओर ऐसी नजरों से देखा जैसे बहू उसकी घनिष्ठ सहेली हो और पलटकर बाहर जाने लगी।

''रमिया!''

वह रुक गई।

''राजीव कहां है!''

''बाबूजी के पास।''

''उसे यहां ले आ।''

''अच्छा।''

रमिया चली गई और कमरे में फिर पहले जैसी स्तब्धता छा गई। दूर से अभी तक कुत्तों के भूंकने की आवाजे आ रही थीं।

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