उपन्यास >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
सहसा एक आहट ने अंजना को चौंका दिया। सामने घर का नौकर खड़ा था।
''खाना तैयार है वीबीजी!''
''कमल बाबू कहां हैं?''
''खाने की मेज पर आपका इंतजार कर रहे हैं।''
नौकर चला गया। अब वह क्या करे? जिन प्रश्नों से बचने के लिए वह कमरे में आ छिपी थी वे उसके सामने फिर से आ खड़े हुए। अब वह खाने से इंकार कैसे कर सकती थी! बच्चे को सावधानी से बिस्तर पर लिटा दिया और उसे लिहाफ उढाकर बाहर चली आई।
नौकर ने ठीक कहा था। कमल खाने की मेज पर बैठा उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। वह सिर को दुपट्टे से ढांपे मेज के पास पहुंच गई। कमल ने उठकर उसके लिए कुर्सी आगे कर दी। वह धीरे से केवल 'धन्यवाद' कह सकी और चुपचाप कुर्सी पर बैठ गई।
तुरंत ही नौकर ने मेज पर खाना लगा दिया। कमल डोंगा उठाकर जैसे ही अंजना की प्लेट में सब्जी डालने लगा, उसने उसका हाथ थाम लिया और बर्तन अपने हाथ में लेकर खाना परोसने लगी।
''आप यहां अकेले रहते हैं?''
''नहीं तो, घर है, नौकर है, चारों ओर भांति-भांति के जानवर हैं।''
''मेरा मतलब है, अभी तक आपने अपना घर नहीं बसाया? शादी नहीं की?''
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