|
उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
|
352 पाठक हैं |
भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘इस कसौटी पर मैं महिमा को इन दोनों स्त्रियों से श्रेष्ठ मानता हूँ। परन्तु यह लड़की तो सूसन से भी घटिया प्रतीत हुई है।’’
‘‘एक घण्टे की संगत से आप कैसे इतनी लम्बी-चौड़ी व्याख्या को जान गये हैं?’’
‘‘हमारे यहाँ यह कहावत है कि एक दाना देखने से पूर्ण देगची की दाल के पक जाने का अनुमान लग सकता है।
‘‘देखो, मैं तुम्हें बताता हूँ। इसने तुम्हारे लिये ब्रेक-फास्ट का प्रबन्ध घर पर नहीं किया। मैं समझता हूँ कि यह इसकी मूर्खता का एक लक्षण है। इसी से शेष बातों का भी ज्ञान हो गया है।’’
‘‘परन्तु रसोईघर मे चूल्हा सेंकना क्या सौन्दर्य का लक्षण है?’’
‘‘हाँ, मानसिक सौन्दर्य का। इसका यह अर्थ निकला है कि उसे अपनी नौकरी पक्की प्रतीत हो रही है। परन्तु मैं समझता हूँ कि एक एयर होस्टैस चार-पाँल वर्ष से अधिक यह कार्य नहीं कर सकती और यदि कहीं इसके बच्चा हो गया तो इससे भी पहले छुट्टी मिल जायेगी।’’
‘‘हम इस बात का बहुत ध्यान रख रहे हैं कि बच्चा न हो।’’
‘‘परन्तु प्रत्येक बार जब तुम उसकी सगत में होते हो तो बच्चा हो जाने की चिन्ता होती ही है?’’
‘‘जब हम पूर्ण सावधानी बर्तते हैं तो फिर चिन्ता नहीं होती।’’
‘‘यह तुम अनृत भाषण कर रहे हो, अथवा तुम अज्ञानता की बात कहने लगे हो?’’
‘‘ऐसा है नहीं। इस विषय में तुम लुईसी से बात करना। वह मेरे भावों का समर्थन करेगी।’’
कुलवन्त ने बात बदल दी। उसे अमृत की मनोवृत्ति ठीक प्रतीत नहीं हो रही थी।
|
|||||

i 









