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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


पुष्पक विमान में उसके सेनापति और साथ कई सहस्त्र सैनिक थे। रावण का विचार था कि विन्ध्य राज्य को जीतने के लिये इतने सैनिक पर्याप्त हैं। वास्तव में वह तो अपनी पूर्व विजयों का भय दिखाकर ही महिष्मति के महाराज अर्जुन से कर प्राप्त करना चाहता था।

उसने अपना विमान नर्मदा नदी के तट पर उतार दिया और वहाँ से अपना एक दूत महिष्मति पुरी में राजा के प्रासाद पर भेज दिया। दूत मारीच था। उसने राजप्रासाद के द्वार पर जाकर महाराज से मिलने का अनुरोध किया।

द्वारपाल का कहना था, ‘‘महाराज इस समय नहीं मिल सकते।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘वह अपनी रानियों के साथ जल-विहार कर रहे हैं।

‘‘कब तक जल-विहार से अवकाश पायेंगे?’’

‘‘आज वह नहीं मिलेंगे।’’

‘‘तो उनको सन्देश भिजवा दो।’’

‘‘हाँ, बताओ?’’

‘‘लंका नरेश रावण जिसने देवलोक को विजय किया है, नर्मदा के किनारे ठहरे हुए हैं। वह चाहते हैं कि विन्ध्य प्रदेश के राजा तुरन्त उनसे आकर मिलें और उनको भेंट-पूजा से स्वागत करें।’’

द्वारपाल ने कहा, ‘‘सन्देश अभी भिजवा देता हूँ, परन्तु आज उनसे भेंट की सम्भावना नहीं है।’’

इस पर मारीच ने आवेश में कह दिया, ‘‘यदि आज भेंट नहीं हुई तो हम आज इस सुन्दर नगरी को लूट लेंगे और यहाँ पर अपना राज्य स्थापित कर देंगे।’’

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