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कविता संग्रह >> स्वैच्छिक रक्तदान क्रांति

स्वैच्छिक रक्तदान क्रांति

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :127
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9604

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स्वैच्छिक रक्तदान करना तथा कराना महापुण्य का कार्य है। जब किसी इंसान को रक्त की आवश्यकता पड़ती है तभी उसे इसके महत्त्व का पता लगता है या किसी के द्वारा समझाने, प्रेरित करने पर रक्तदान के लिए तैयार होता है।


खून और पानी


चिल्ला रहा है अन्धा कूप
बाहर निकालो
मेरे बासी सड़े पानी को
ताकि प्रस्फुटित हो
मेरे कुन्द स्रोतों से
नया ताजा जल।

पैंजनिया बाजे
रुनक-झुनक पनघट पे,
अन्धापन दूर हो जाए।

ऐसी ही समानता है
देह और कुएँ में।
रक्तदान न किया
तो जमने लगेगा
सड़ जाएगा
मर जाएगा व्यर्थ।
स्वैच्छिक रक्तदान करो
नया ताजा बनने दो
अन्यथा शरीर
अंधा कुआँ बन जाएगा
सारे स्पन्दन, संवेदनाएँ
शिथिल पड़ जाएंगी।

एक बड़ा अन्तर है
कुएँ और शरीर में
कुआँ पानी निकालने के लिए
चिल्लाता है।

शरीर स्वेच्छा से
रक्तदान करता है
महान काम करता है।

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