कविता संग्रह >> यादें यादेंनवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
बचपन की यादें
आती हैं चली जाती हैं
पर इस कोरे दिल पर
अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
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कागज की कश्तियां
पानी पर तैराना,
याद आता है हमें
गुजरा हुआ जमाना।
काव्य-क्रम
- यादें
-
- भूमिका
- मुस्काती हवा
- पेड़ों रूपी ताज
- मेरे गीत
- नीरस जिन्दगी
- अमीर और गरीब
- मेरा घर
- मेरे आँगन में
- मेरा जीवन
- तुम्हारा वियोग
- गरीब की आँखें
- एक बार
- सजी धरा
- पक्षियों का संसार
- अंकुर की पुकार
- टूटा हुआ पत्ता
- आँखों का मोह
- गुरू जी
- तेरी आँखें
- फैलाओ हरियाली
- चेतावनी
- मेरा घर
- नौ कन्या
- शहर
- गर्मी
- ऊँचा उठाना है
- परिन्दे
- मैं कवि बना
- आँचल छूकर आई हवा
- प्यारा गाँव
- दुल्हन सी सजी धरती
- प्रकृति
- बारिश
- मेरी तमन्ना
- वीरों का देश
- सफेद चांद
- धरा की शोभा
- घर की याद
- ऐ घटाओ !
- श्वेत बगुले
- बावरी गोपी
- गम छुपाने को
- आपकी याद
- छोटे हाथ
- कुछ न था
- पीले फूल
- यादें
- प्रियतम
- पूछा हवा ने
- बचपना
- हे मेघो !
- माँ
- सावन
- तेरी याद
- तुम्हारी हँसी
- याद आता चेहरा
- याद आते हो
- आज का किसान
- मैं आधी
- पहली बार
- उजली सांझ
- सांझ और सवेरा
- बसन्त जी का आगमन
- काव्य की खोज
- हवा और महबूबा
- यादें बचपन की
- वर्षा की हरियाली
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