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यादें

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607

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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।



गरीब की आँखें


मलिन सा चेहरा
गिरती उठती हौले-हौले
तन पर फटे हुए कपड़े
जरूर ये आँखें
किसी गरीब की हैं।

गरीबी की अकड़ ने
तोड़ कर रख दिये काँधे
टेढ़े-मेढ़े बिखरे बाल
निस्तेज निष्ठुर गोरे गाल
गड्ढ़ों में धँसती हुई सी
जरूर ये आँखें
किसी गरीब की हैं।

लक्ष्य बिन्दु पर अटकी सी
ज्यों दे रही चुनौती
हर तूफां से लडऩे की
सहमी दुख झेलने वाली
जरूर ये आँखें
किसी गरीब की हैं।

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