लोगों की राय

कविता संग्रह >> यादें

यादें

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

31 पाठक हैं

बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।



सजी धरा


आज धरा सजी संवरी सी
मिलने चली प्रियतम से
छिडक़ तन पे सुगन्धित इत्र
आँखों में सलोने ले सपने।

पोत सफेद मिट्टी से कपोल
हरे रंग का ओढ़ के शोल
चेहरे पर ले हया की लाली
करने लगी है प्रेमी से किलोल

गहने समस्त पहन कर ये
समय से पहले चली है मिलने
छिडक़ तन पे सुगन्धित इत्र
आँखों में सलोने ले सपने।

आज कदम हुए हैं हल्के
बढ़ चले हैं अपने पथ पे
लम्बा पथ चाहे हो भले
होगा छोटा बढ़ते कदमों से

पंछी बन उड़ छू लेगी आसमां
आज मिलेगी अपने प्रियतम से।
छिडक़ तन पे सुगन्धित इत्र
आँखों में सलोने ले सपने।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book