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यादें

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607

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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।



चेतावनी


आज अल सुबह का मौसम
गुमसुम सा अलसाया मौसम,
दे रहा है यह चेतावनी
शायद आज कोई विपदा
आने वाली है बहुत बड़ी।

पेड़ चुपचाप निश्चल से
पक्षी बैठे चुप्पी साधे
हवा भी सांस मात्र कम
तन को जैसे गर्मी लागे ,
मन हुआ विचलित ये कैसे
कैसी तीव्रता सांसों में बढ़ी।
शायद आज कोई विपदा
आने वाली है बहुत बड़ी।

सुबह जो होती थी चहचाहट
आज वो वाणी मौन है क्यों
पशुओं ने चारा छोड़ दिया
आज उन्हें भूख नहीं है क्यों
या उपवास है इनका कोई
या फिर इनकी बैचेनी बढ़ी
शायद आज कोई विपदा
आने वाली है बहुत बड़ी।

मेरा मन भी आज न जाने
क्यों इतना घबरा रहा है
आने वाली विपदा का ये
संकेत दे सब समझा रहा है
उठ कर बांध के बंध तू अपनी
लडऩे की कर विपदा से तैयारी।
शायद आज कोई विपदा
आने वाली है बहुत बड़ी।

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