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यादें

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607

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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।



वीरों का देश


लेखनी जरा मचल कर चल
लिखना है तुम्हें इतिहास,
इसलिए जरा संभल कर चल।

आज लिख वीरों की कहानी
जिसे लिखता हूँ तेरी जुबानी
कितने वीर कर गए
मातृभूमि पर निछावर जीवन।
लेखनी जरा मचल कर चल
लिखना है तुम्हें इतिहास,
इसलिए जरा संभल कर चल।

वीरों की पावन धरा है जो
जिसे खून से वीरों ने सींचा
लिखना वही जो मचा दे हलचल
आज के युवाओं में भर दे मातृत्व
लेखनी जरा मचल कर चल
लिखना है तुम्हें इतिहास,
इसलिए जरा संभल कर चल।

आज के युवा भटक गए
पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध में
साधारण बन जाओ युवाओं
स्वदेशी वस्तुएं अपना कर।
लेखनी जरा मचल कर चल
लिखना है तुम्हें इतिहास,
इसलिए जरा संभल कर चल।

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