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यादें

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607

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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।



धरा की शोभा


प्रकृति की शोभा है न्यारी
इसी से धरा लगती है प्यारी।

धरती पर हैं जीव विचित्र
होता है आँखों का भ्रम
लगते हैं अनोखे प्यारे चित्र
प्रकृति का रूप है हरियाली।
प्रकृति की शोभा है न्यारी
इसी से धरा लगती है प्यारी।

मन मोह लेती है प्यारी झलक
जब उजड़ता देखता हूँ इसे
आँखों से अश्रु जाते है छलक
प्रकृति हमें है प्राणों से प्यारी
प्रकृति की शोभा है न्यारी
इसी से धरा लगती है प्यारी।

पाने के लिए ऐशो आराम
आज के युग में मानव ने
पृथ्वी को कर दिया वीरान,
पेड़ लगाओ हरियाली बढाओ
प्रकृति की शोभा है न्यारी
इसी से धरा लगती है प्यारी।

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