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यादें

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607

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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।



माँ


मेरे आँचल में पलने वालों
यूं मत नोचो आँचल को
आखिर तुम्हारी लगती हूँ माँ
क्यों पीड़ा पहुंचाते हो मन को।

मेरा है तुमने दूध पिया
आँचल की छांव में खेले तुम
गोद मेरी रही गिली हमेशा
सूखी जगह रहे हो तुम
आज क्यों फिर बनकर दानव
ललकारते हो जननी को।
आखिर तुम्हारी लगती हूँ माँ
क्यों पीड़ा पहुंचाते हो मन को।

मेरा सारा प्रेम महासागर
न्यौछावर है बेटे तुझपर
मैं हूँ तेरे पथ की दर्शक
पाल पोश बड़ा दिया है कर
फिर क्यों मुझको छोटी कहकर
अपमान मेरा करते हो तुम क्यों।
आखिर तुम्हारी लगती हूँ माँ
क्यों पीड़ा पहुंचाते हो मन को।

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