लोगों की राय

कविता संग्रह >> यादें

यादें

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

31 पाठक हैं

बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।



तेरी याद


एक आहट सी करीब आकर,
ज्यों हवा में बदल जाती है,
तेरी यादें ठीक भी उसी तरह
आकर धूमिल हो जाती हैं।

मगर तुम हो कि-----
कभी पास आकर भी
हमारे पास से गुजर जाती हो,
हमें क्या मालूम था कि
बेवफा तुम नहीं
बल्कि हम ही थे
जो लगाया तुमसे ही दिल।

अब भुगत रहे हैं उसकी सजा
तुम जा-जाकर बेगानों से
खुलकर रहे हो मिल
ये भी कोई मिलन है
मिलना ही है तो मिलो
मुझे उससे क्या?
मगर ना मिलना
हमसे तुम आईंन्दा।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book