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यादें

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607

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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।



काव्य की खोज


शुद्ध काव्य की क्या खोज करूं
खुद जीवन अंधकारमय मेरा ,
पंक्तियां तैरती-डुबती सी हैं
धूमिल सा यह रास्ता है मेरा।

गमों का सांया भंवर बन कर
तैरते हुए उन सभी अक्षरों को
और किंचित उन शब्दों को
अपने अन्दर समेट कर
अथाह गहराई में ले जाता।
शुद्ध काव्य की क्या खोज करूं
खुद जीवन अंधकारमय मेरा।

टूटे हुए शब्दों को बटोर कर
माना बनाता हूँ मैं कविता
कहां मिलेगा इनको इनका
उतना स्नेह और आदर।
जो इनको मिलना है होता
शुद्ध काव्य की क्या खोज करूं
खुद जीवन अंधकारमय मेरा।

सरोबार पन रस वाक्यों को
कौन होंठो से लगाऐगा।
पानी से बिखरे भीगे शब्दों का
भला आस्वादन कौन करेगा।
इनका स्वाद मानो है फीका।
शुद्ध काव्य की क्या खोज करूं
खुद जीवन अंधकारमय मेरा।

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