लोगों की राय

कविता संग्रह >> यादें

यादें

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

31 पाठक हैं

बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।



यादें बचपन की


कागज की कश्तियां
पानी पर तैराना,
याद आता है हमें
गुजरा हुआ जमाना।

चंचल बुद्धि, चंचल मन
खेलने निकलते थे
रेतीले टीलों पर हम
उस बालू रेत पर
उसी रेत के घरौंदे बनाना।
याद आता है हमें
गुजरा हुआ जमाना।

कभी वर्षा के सीजन में
नंगे शरीर होकर
धड़ल्ले ये गलियों में
उछल कूद कर नहाना।
याद आता है हमें
गुजरा हुआ जमाना।

सर्दी की कडक़ड़ाती
बर्फि ली ठंड में
लसेटे रजाई अपने तन पे
चारपाई पर लेटकर
रेवड़ी मूंगफली चबाना।
याद आता है हमें
गुजरा हुआ जमाना।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book