लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> श्री दुर्गा सप्तशती

श्री दुर्गा सप्तशती

डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :212
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9644

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

212 पाठक हैं

श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में


।। ॐ श्रीदुर्गायै नमः।।

नवां अध्याय : निशुम्भ वध

ध्यान

मनहुं पुष्प बन्धूक देह दुति दीपति न्यारी।
सुबरन सम सब बरन पीत छबि कछु अरुनारी।।
अंकुश रजु अछमाल, वरद मुद्रा कर धारे।
अर्धचन्द्र कर मुकुट सदा सिर रहति संवारे।।
तिरलोचन को रूप अर्ध नारीश्वर जानहु।।
श्रीबिग्रह को ध्यान सदा निज उर महं आनहु।।

रक्तबीज संहार सुनि हरषे सुर महिपाल।
जेहिं विधि सुंभ निसुंभ वध ताकर सुनहु हवाल।।१।।

अद्‌भुत चरित कहहु मुनि राजा।
केहि विधि देवि कीन्ह सुरकाजा।।
शुंभ निशुंभ असुर बरिबंडा।
इन कहं कत मारति चामुण्डा।।
कहेउ मुनीस सुनहु महिपाला।
रक्तबीज वध लखि तेहिं काला।।
छीजत कटक देखि असुरारी।
सेन साजि धावा खल भारी।।
चला निसुंभ महा अभिमानी।
क्रुधित असुर सेना निज आनी।।
सुंभ संग सेना चतुरंगा।
दोउ दल बढ़े चढ़े रन रंगा।।

देवि संग दोऊ भिरे, महाअसुर बलवान।
मेघ झरी बरसहिं जथा, तैसेहिं मारत बान।।२क।।
सुंभ-निसुंभ महाप्रबल, जस जस करत प्रहार।
लै धनु काटति मातु सब, निफल होत तिन वार।।२ख।।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

Maneet Kapila

Can you plz show any of the अध्याय