धर्म एवं दर्शन >> श्री दुर्गा सप्तशती श्री दुर्गा सप्तशतीडॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में
अंगन्यास
ॐ खंगिनि सूलिनि चक्रिनि घोरा।गदिनी शंखिनी बान कठोरा।।
धनुधारिनी कर परिधा धारे।
पुनि भुसुंडि ये अस्त्र तिहारे।।
हृदयाय नम:।
ॐ दक्षिण पश्चिम सूल लै, कर में लिए कृपान।
घण्टा ध्वनि करि रक्ष मां करिके सर संधान।।
शिरसे स्वाहा।
ॐ दक्षिण पश्चिम पूर्व में, रक्ष चण्डिका मातु।
कर त्रिसूल ले विचरि मां, ईस्वरि उत्तर पातु।।
शिखायै वषट्।
ॐ विचरत तीनहुं लोक तव, रूप मृदुल अरु घोर।
तिन रूपनि ते रक्ष मां, लोक सकल पुनि मोर।।
कवचाय हुम्।
ॐ गदा खंग तिरसूल अरु अस्त्र सस्त्र बहु धारि।
कर पल्लव लै चंहु दिसनि राखहु इहै गुहारि।।
नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ सर्व रूप सर्वेस्वरी, सकल शक्ति संयुक्त।
दुर्गा देवि नमो नमो, कर मां भय से मुक्त।।
अस्त्राय फट्।
इसके पश्चात् अग्रलिखित छन्द द्वारा देवी का ध्यान करने के पश्चात् पाठ प्रारम्भ करें।
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