| धर्म एवं दर्शन >> श्रीकृष्ण चालीसा श्रीकृष्ण चालीसागोपाल शुक्ल
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श्रीकृष्ण चालीसा
      जब अर्जुन को मोह ने घेरा, 
      आया उसको नजर अन्धेरा।
      कर्म अकर्म की सुरत विसारी, 
      आया अन्त वह शरण तिहारी।।15।।
      
      उसको गीता ज्ञान सुनाया, 
      अपना रूप विराट दिखाया।
      विजय पाँडवों की करवाई, 
      नाश हुए पापी अन्याई।।16।।
      
      जय गीता के गावन वाले, 
      जय जय विजय दिलावन वाले।
      जय अर्जुन के मित्र पियारे, 
      जय जगबन्धु जगत से न्यारे।।17।।
      
      जय कारण जय कार्य रूपा, 
      जय जय अलख अभेद अरूपा।
      जय जय निराकार साकारा, 
      जय जय जय जय विश्व अधारा।।18।।
      			
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