जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
धीरे-धीरे समय व्यतीत होता गया। चन्द्रशेखर की अवस्था आठ-नौ वर्ष की हो गई। शेर का माँस खाने से और वच्चे वीर बनते हो या न बनते हों किन्तु चन्द्रशेखर ने अवश्य बचपन से ही वीरता का परिचय देना आरम्भ कर दिया।
दीपावली की रात्रि थी। चारों ओर रोशनी की जगमगाहट हो रही थी। बड़े बच्चे फुलझडियाँ और रंगीन दियासलाइयों की तीलियाँ जला रहे थे। छोटे बच्चे इन खेलों को देख-देखकर खुश हो रहे थे।
चन्द्रशेखर ने छोटे बच्चों को अधिक प्रसन्न करने के लिये, रंगीन दियासलाइयों की दस-बारह तीलियाँ एक साथ जलाईं। उनका प्रकाश अधिक तीव्र और बहुत देर तक रहा। यह देखकर बच्चे खुशी के मारे चिल्लाने और तालियाँ पीटने लगे।
एकाएक एक लड़के की दृष्टि चन्द्रशेखर की हथेली पर पड़ी, वह बहुत बुरी तरह जल गई थी। उसने घबरा कर शोर मचाना आरम्भ कर दिया, ''देखो, चन्द्रशेखर का हाथ जल गया है!'' कई लड़कों ने दौड़कर चन्द्रशेखर को पकड़ा। कोई डॉक्टर को बुलाने दौड़ा। कोई माता जगरानी और पिता सीताराम जी को इसकी सूचना देने दौड़ चला।
किन्तु चन्द्रशेखर के लिये तो मानो कुछ हुआ ही नहीं। वह वैसे ही खड़ा-खड़ा हँस रहा था। उसने बच्चों को घवराते और दौड़ते-भागते देख, अपने पास बुलाकर कहा, ''चिन्ता की कोई बात नहीं है। घाव धीरे-धीरे ठीक हो जायेगा। यह शरीर तो किसी-न-किसी दिन बिगड़ने और मिटने के लिए ही बना है, फिर इससे इतना अधिक मोह क्यों किया जाये।''
सभी लड़के अपने साथी के साहस और वीरतापूर्ण शब्दों को सुनकर आश्चर्यचकित से रह गये।
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