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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी


श्रद्धांजलि


जनता ने अपने प्रिय नेता का शव लेने के लिए सरकार से बहुत अनुरोध किया, किन्तु सरकार पर आजाद का आतंक अब भी छाया हुआ था। उसे विश्वास था कि शव को देखकर जनता की भावनायें भड़क उठेंगी और सरकार को लेने के देने पड़ जायेंगे। पुलिस ने कुछ घंटों में ही 'पोस्टमार्टम' की जाँच पूरी करा कर उनके शव को चुपचाप एकान्त में जला दिया। इसके बाद बड़े गर्व से नगर में सरकारी घोषणा की गई, ''चन्द्रशेखर आजाद पुलिस की गोलियों से मारे गए हैं और उनका दाह-संस्कार भी पुलिस द्वारा ही करा कर, भस्मी त्रिवेणी के पावन जलमें प्रवाहित कर दी गई है।''

नगर भर में करुणा का सागर उमड़ पडा। हर व्यक्ति के चेहरे पर दुःख की काली घटा छाई हुई थी। बात की बात में लाखों नर-नारी और बच्चों की भीड़ उस रक्त-रंजित स्थान पर जमा हो गई, जहाँ उनका पूज्य नेता शहीद हुआ था। सभी उस भूमि की मिट्टी को आंखों में आंसू भरे, सिसकियाँ लेते हुए, बड़ी श्रद्धा से अपने मस्तकों और सिरों पर चढा रहे थे। वह भूमि आँसुओं से तर हो गई थी।

इसके बाद भीड़ ने त्रिवेणी के तट पर खड़े होकर अपने हृदय-सम्राट के प्रति अंतिम श्रद्धांजलियां अर्पित कीं। इधर गंगा जमुना की धारा बहकर संगम पर मिल रही थी उधर श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों की आँखों से भी लाखों गंगा-जमुना बहकर संगम के जल में मिल रही थीं।

जिस वृक्ष की आड़ लेकर आजाद ने अमरत्व प्राप्त किया था, वह जनता के लिए एक तीर्थ वन गया।

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