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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी

'भारत माता की जय, इन्कलाब जिन्दाबाद' की आवाजों से सारा वायुमण्डल गूंज रहा था। हजारों स्त्री-पुरुषों की भीड़ जेल व फाटक पर जमा हो गई थी। बेंतों की सजा भुगतने के बाद, जैसे ही चन्द्रशेखर आजाद जेल से बाहर आये, जनता ने, 'चन्द्रशेखर आजाद की जय, भारत माता के सच्चे सपूत की जय, क्रान्ति के वीर सेनानी की जय' के नारों से उनका स्वागत किया।

'नौकरशाही मुर्दाबाद'! अत्याचारियों का नाश हो, स्वराज्य हमारा ध्येय है।' नारे लगाकर ब्रिटिश सरकार के प्रति विरोध प्रकट किया गया। फूल-मालाओं से आजाद के सारे शरीर को ढंक दिया गया था।

शाम को ज्ञानवापी मुहल्ले में एक बहुत बड़ी सभा हुई। नगर के कोने-कोने से स्त्री-पुरुष और बच्चों के समूह क्रान्ति के देवता चन्द्रशेखर आजाद के दर्शनों को उमड़े चले आ रहे थे।

जिस समय मंच के ऊपर खड़े होकर वीर चन्द्रशेखर आजाद ने जनता को दर्शन दिए, सभी की आँखों से प्रेम,श्रद्धा और करुणा के आंसू झर रहे थे। वह सुन्दर, बलिष्ठ शरीर वाला क्रान्ति का दूत, सचमुच ही आजादी की प्रतिमूर्ति था। उसने अपना नाम 'आजाद' अपने गुणों के अनुरूप ही बतलाया था।

सब ओर से फूलों की वर्षा हुयी। सारा मंच रंग-विरंगे फूलों से ढंक गया। वड़े जोश के साथ चन्द्रशेखर आजाद और भारत माता की जय-जयकार हो रही थी। आजाद के घावों को देखकर, सभी के हृदय में ब्रिटिश साम्राज्यशाही के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई थी।

राजस्थान के राज्यपाल श्री संपूर्णानन्दजी उन दिनों 'मर्यादा' नामक पत्रिका का सम्पादन करते थे। उन्होंने अपनी पत्रिका में चन्द्रशेखर आजाद का चित्र निकाला, नौकरशाही द्वारा किये गए अत्याचारों का भंडा-फोड़ दिया। इससे जनता में ब्रिटिश सरकार के प्रति विद्रोह की भावना जड़ पकडने लगी।

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