उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
जिस संसार में इतना फरेब हो कि भैरव ने अपनी सहायता का बदला उन्हें धोखा दे कर दिया और रमा ने भी अदालत के सामने खड़े हो कर झूठी गवाही देने में हिचक न की, तो वे किसलिए छुटकारा चाहें? नि:संदेह जेल इससे अच्छी होगी!
उस समय की उनकी घृणा भरी वाणी रमा के हृदय पर हथौड़े की तरह चोट कर रही थी। रह-रह कर उसका आहत हृदय कराह उठता। उसने झूठी गवाही नहीं दी थी, फिर भी सच बात तो उसने छिपा ही दी! काश, उस समय यह ज्ञात होता कि सच बात न कहने पर उसे रात-दिन इस तरह ग्लानि में जलते रहना होगा। तुरंत उसके सामने भैरव का अपराध इतना गहनतम हो उठा, जिसके कारण रमेश ने उसे वह दण्ड देना चाहा था कि उसे सोचते ही उसके समस्त हृत्तंतु मूक वेदना से झंकृत हो उठे।
रमेश ने उसके सिर्फ एक बार के कहने पर ही उसे माफ कर दिया था। उसे खयाल आया कि जितना रमेश ने उसकी बात को इस तरह मान कर उसका सम्मान किया है, उतना आज तक इस जीवन में कभी किसी ने नहीं दिया।
रात-दिन की इस जलन में एक सत्य उसके सामने निखर कर चमक उठा था। एक अमूल्य हस्ती को इस तरह, जिस समाज के भय से उसने गँवा दिया, वह समाज है क्या? क्या उसकी बिसात है? और क्या उसकी कसौटी? उसके ठेकेदार हैं वेणी और गांगुली जैसे लोग, जिनके पल्लों में झूठ और फरेब बँधे रहते हैं। जिसकी बिसात में है धनिकों, समर्थों के हाथों में नाचना, और जिसकी कसौटी है झूठ, फरेब, दगाबाजी! जो जितना बड़ा झूठा है, जितना बड़ा फरेबी है, वह उतना ही बड़ा समाज का ठेकेदार है।
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