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उपन्यास >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689

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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास


रमेश शांत भाव से रमा की तरफ देखता रहा।

थोड़ी देर बाद वह फिर बोली-'हो सकता है कि आज तुम मुझे क्षमा न कर सको! रमेश भैया, इस बात का खयाल कर अपने दिल में दुखी भी मत होना; क्योंकि मुझे पूरा विश्वानस है कि एक न एक दिन तुम्हारे अंत:करण का आशीर्वाद मुझे प्राप्त होगा ही! तभी मेरा मन आज पूर्ण रूप से शांत है। तुम निश्चदय ही मेरे सारे अपराधों को क्षमा करोगे! मैं कल जा रही हूँ, रमेश भैया?'

रमेश ने चौंक कर पूछा-'कहाँ?'

'वहीं, जहाँ ताई जी ले जाएँगी।'

'पर वे तो लौट कर नहीं आएँगी शायद!'

'तो मैं भी नहीं आऊँगी! मैं तुम्हारे चरणों की धूलि अब अंतिम बार लेती हूँ।'

कह कर रमा ने रमेश के पैरों पर अपना सिर टेक दिया। रमेश ने एक दीर्घ निःश्वामस छोड़ा और उठ कर खड़े होते हुए कहा-'जाओ! पर क्या मुझे इतना भी न बताओगी कि मुझे छोड़ कर इस तरह क्यों चली जा रही हो?'
रमा ने कोई उत्तर न दिया।

'तुम अपनी सारी बातें मुझसे गोपनीय रख कर क्यों जा रही हो, रमा? मैं नहीं जानता-क्या है इसका कारण? मेरी भगवान से यही प्रार्थना है कि मुझे वह दिन दिखा दे जल्दी से कि जब मैं तुम्हें अपने सारे अंत:करण से क्षमा कर सकूँ। कितना कष्ट हो रहा है, तुम्हें क्षमा न कर सकने के कारण, यह मैं ही जानता हूँ।'

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