उपन्यास >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
रमेश चित्र-लिखित-सा यह सब सुन रहा था। उसका मन ताई जी के इस तर्क को अंतिम सत्य मान कर स्वीकार नहीं कर पा रहा था। विश्वेकश्वोरी ने यह बात तोड़ते हुए कहा-'बेटा, कहीं भूल मत कर बैठना! फल को ही उपाय समझने की वजह से, तुम जाति की ऊँच-नीच को ही इसका प्रधान कारण मानते हो, और यह सोचते हो कि जब तक इसमें कोई सुधार नहीं किया जाएगा, तब तक कोई सुधार होना संभव नहीं! लेकिन उससे दोनों ही पक्षों की हानि होगी। मगर यदि तुम मेरे कथन की सत्यता की परख करना चाहो, तो जरा शहर के आस-पास कुछ गाँवों में जा कर घूम आओ, और फिर कुआँपुर गाँव की स्थिति से उसकी तुलना कर देखो, तब आप ही सब बातें साफ हो जाएँगी।'
रमेश को कलकत्ता के पास के कुछ गाँवों का अनुभव था। उसने मन-ही-मन उनकी कल्पना की, और सहसा उनकी आँखों के सामने से पर्दा-सा हट गया, और वे विस्मयान्वित नेत्रों से विश्वेँश्वनरी के चेहरे की तरफ एकटक देखने लगे।
रमेश के इस परिवर्तन की ओर ध्यान न देते हुए विश्वेिश्वनरी बोलीं-'मैं तुमसे अपनी जन्मभूमि को छोड़ कर कहीं न जाने के लिए बार-बार जो कहती हूँ, सो इसीलिए! जो लोग अपने गाँव के बाहर जा कर अनुभव प्राप्त करते हैं, अगर वे ही लोग अपने गाँव में लौट आएँ, उनसे अपना संबंध-विच्छेद न कर, तुम्हारी ही तरह उनके सुधार में लग जाएँ, तो हमारे देहाती समाज की यह बुरी हालत न रहे, जो आज है-और न फिर ये लोग तुम जैसों को ठुकरा कर, गोविंद गांगुली जैसों को सिर पर चढ़ाते।'
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