उपन्यास >> देवदास देवदासशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
|
7 पाठकों को प्रिय 367 पाठक हैं |
कालजयी प्रेम कथा
मणि ने कहा-'नहीं, किसी तरह नहीं आने देंगे।' पार्वती हट गई, उसे यह बातचीत बिलकुल नहीं सुहायी। पार्वती के पिता का नाम नीलकंठ चक्रवर्ती है। चक्रवर्ती महाशय जमींदार के पड़ोसी है, अर्थात मुखोपाध्याय जी के विशाल भवन के बगल में ही उनका छोटा-सा पुराने किते का मकान है। उनके बारह बीघे खेती-बारी है, दो चार घर जजमानी है, जमीदार के घर से भी कुछ-न-कुछ मिल जाया करता है। उनका परिवार सुखी है और दिन अच्छी तरह से कट जाता है। पहले धर्मदास के साथ पार्वती का सामना हुआ। वह देवदास के घर का नौकर था! एक वर्ष की अवस्था से लेकर आठ वर्ष की उम्र तक वह उसके साथ है; पाठशाला पहुंचा आता है और छुट्टी के समय घर पर ले आता है, यह कार्य वह यथानियम प्रतिदिन करता है तथा आज भी इसीलिए पाठशाला गया। पार्वती को देखकर उसने कहा-'पारो, तेरा देव दादा कहां है?'
'भाग गये।' धर्मदास ने बड़े आश्चर्य से कहा-'भाग! क्यों?'
फिर पार्वती ने भोलानाथ की दुर्दशा की कथा को नए ढंग से स्मरण कर हंसना आरंभ किया-' देव दादा-हि-हि-हि-एक बार ही चूने की ढेर में हि-हि-हूं -हूं -एकबारगी धर्म, चित्त कर दिया.. '
धर्मदास ने सब बातें न समझकर भी हंसी देखकर थोडा-सा हंस दिया फिर हंसी रोककर कहा-'कहती क्यों नहीं पारो, क्या हुआ?'
'देवदास ने भूलो को धक्का देकर चूने में गिरा.. हि-हि-हि!' धर्मदास इस बार सब समझ गया और अत्यंत चिंतित होकर कहा-'पारो, वह इस वक्त कहां है, तुम जानती हो?'
'तू जानती है, कह दे। हाय! हाय उसे भूख लगी होगी।'
|