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धर्म एवं दर्शन >> गायत्री और यज्ञोपवीत

गायत्री और यज्ञोपवीत

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9695

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यज्ञोपवीत का भारतीय धर्म में सर्वोपरि स्थान है।




यज्ञोपवीत के सम्बन्ध में शास्त्रों के आदेश


शास्त्रों में यज्ञोपवीत की महिमा बड़े विस्तार से वर्णन की गई है। उसे प्रत्येक विचारवान् व्यक्ति के लिये आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी बताया गया है। देखिये-

कोटि जन्मार्जितं पापं ज्ञानाज्ञानकृत च यत्।
यज्ञोपवीत   मात्रेण     पलायन्ते  न   संशय:।।
- पद्म पुराण कौशल खण्ड

करोड़ों जन्म के ज्ञान-अज्ञान से किये हुए पाप यज्ञोपवीत धारण करने से नष्ट हो जाते हैं इसमें संशय नहीं।

येनेन्द्राय वृहस्पतिर्व्यास पर्यदधादमृतं तेनत्वा।
परिदधाम्बा  युषे  दीर्घायुत्वाय  बलाय वर्चसे।।
- पा0 गृ0 2/2।7

जिस प्रकार इन्द्र को वृहस्पति ने यज्ञोपवीत दिया था, उसी तरह आयु बल बुद्धि और सम्पत्ति की वृद्धि के लिए मैं यज्ञोपवीत धारण करता हूँ।

देवा  एतस्यामवद  पूर्वे  सप्तर्षयस्तपसे  ये  निषेदु:।
भीमा जाया ब्राह्मणस्योपनीता दुर्धां दधाति परमे व्योमन्।।
- ऋग्वेद 10/109/6

प्राचीन तपस्वी सप्त-ऋषि तथा देवगण ऐसा कहते हैं कि यज्ञोपवीत ब्राह्मण की महान् शक्ति है। यह शक्ति अत्यन्त चरित्रता और कठिन कर्तव्य परायणता प्रदान करने वाली है। इस को धारण करने से नीच-जन भी परमपद को पहुँच जाते हैं।

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