धर्म एवं दर्शन >> गायत्री और यज्ञोपवीत गायत्री और यज्ञोपवीतश्रीराम शर्मा आचार्य
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यज्ञोपवीत का भारतीय धर्म में सर्वोपरि स्थान है।
यज्ञोपवीत का उद्देश्य
मानवीय जीवन में उस विवेक को जागृत करना होता है, जिससे वह अपने
वर्तमान-भूत-भविष्य को सुखी और सम्पन्न बना सके। जो लोग अपना जीवन लहर में
पड़े फूल-पत्तों की तरह अच्छी बुरी परिस्थितियों के साथ घसीटते रहते हैं वह
कहीं भी हों, दुःखी ही रहते हैं; किन्तु हम जब प्रत्येक कार्य विचार और
योजनाबद्ध तरीके से पूरा करते हैं तो भूलें कम होती हैं और हम अनेक संकटों
से अनायास ही बच जाते हैं।
यज्ञोपवीत हमें (1)
माता
(2) पिता और (3) आचार्य के प्रति
कर्त्तव्य पालन की भी
प्रेरणा देता है और (1)
ब्रह्मा
(2) विष्णु (3) महेश इन
तीन सृष्टि की (1)
सृजन (2)
पालन और (3) विनाश की
शक्तियों के साथ सम्बन्ध स्थापित किये रखने की व्यवस्था भी जुटाता है।
इसके व्यावहारिक और दार्शनिक रहस्यों का उद्घाटन ही गायत्री और यज्ञोपवीत
के रूप में हुआ है। इसलिए इन दोनों तत्वों को भारतीय संस्कृति में सवोंच्च
प्रतिष्ठा दी गई है। बीच में लोग उस तत्वज्ञान को भूल गये जो यज्ञोपवीत की
3 लड़ों, 9 तार और 96 चौवों में सूत्ररूप से पिरोये हुए हैं, उसे फिर से
जागृत करने की बड़ी आवश्यकता है। यज्ञोपवीत हमारे शरीर की नहीं जीवन की
शोभा भी है, यदि हम भारतीय उसे फिर शिक्षाओं और आदर्शों के साथ धारण कर
सकें तो यज्ञोपवीत भी सार्थक हो हमारा मनुष्य जीवन भी।