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धर्म एवं दर्शन >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 22 ।

उथपे थपनथिर थपे उथपनहार,
केसरीकुमार बल आपनो सँभारिये ।
रामके गुलामनिको कामतरु रामदूत,
मोसे दीन दूबरेको तकिया तिहारिये ।।

साहेब समर्थ तोसों तुलसीके माथे पर,
सोऊ अपराध बिनु बीर, बांधि मारिये ।
पोखरी बिसाल बाँहु, बलि बारिचर पीर,
मकरी ज्यौं पकरिकै बदन बिदारिये ।।
 
भावार्थ - हे केशरीकुमार! आप उजड़े हुए (सुग्रीव-विभीषण) को बसानेवाले और बसे हुए (रावणादि) को उजाड़ने वाले हैं, अपने उस बलका स्मरण कीजिये। हे रामदूत! रामचन्द्रजी के सेवकों के लिये आप कल्पवृक्ष हैं और मुझ-सरीखे दीन-दुर्बलों को आपका ही सहारा है। हे वीर! तुलसी के माथेपर आपके समान समर्थ स्वामी विद्यमान रहते हुए भी वह बाँधकर मारा जाता है। बलि जाता हूँ, मेरी भुजा विशाल पोखरी के समान है और यह पीड़ा उसमें जलचरके सदृश है सो आप मकरी के समान इस जलचरी को पकड़कर इसका मुख फाड़ डालिये।।22।।

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