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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला

हौसला

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9698

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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं

संस्कार


चारों फौजी गुनगुनी धूप में बैठे बैठे अपनी स्मृतियों को ताजा कर रहे थे।

'सुन राजन, गोलियां खत्म होने के बाद भी मैंने दुश्मन के दो फौजियों को अपनी बंदूक के चाकू से मारा' बताते हुए मंगल का सीना चौड़ा हो रहा था।

'अरे राजन, मैंने दुश्मन के टैंक पर अपनी एलएमजी. से गोला दागा कि उसके परखच्चे उड़ गए और उसकी टुकड़ी भाग खड़ी हुई'-बुधराम की छाती फूल गयी थी।

'देखो राजन, मैंने भी दुश्मन के हवाई जहाज को वो निशाना लगाया कि आकाश में उड़ते पक्षी की भांति फड़-फड़ाता हुआ धराशायी हो गया,' शनिचरा ने हाथ को हिलाकर पक्षी की फड़फड़ाहट को दिखाया।

'आप तीनों तो बहुत बहादुर हो, देश के लिए बहादुरी से लड़े परन्तु आपने न जाने कितने लोगों को अपंग, निःशक्त बनाया और मौत के घाट भी उतारा, परन्तु मैं तो मेडिकल कोर में था। मैंने कुछ लोगों को अशक्त, विकलांग होने से बचाया तथा कुछ के जीवन की रक्षा की- शांत भाव से राजन ने अपनी बात कही।

राजन की बात सुनकर वे तीनों गर्व से उसकी ओर देखने लगे।


० ० ०

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