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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला

हौसला

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9698

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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं

अनहोनी


भाभी के गुजर जाने के बाद दयाशंकर अपने भाई की अनाथ व अपंग लड़की घीरा को अपने साथ ले आया परन्तु उनकी पत्नी रीना को वह फूटी आँख भी न सुहायी। अपंग होने के बावजूद घीरा सारा दिन अपनी चाची के काम में हाथ बटाती, रात को जो कुछ रूखा-सूखा मिल जाता खा-पीकर सो जाती।

रीना को यह भय था कि एक अपंग लड़की के घर में आने से उस घर की खुशियां बिखर जाएगी। रात को रीना बिखर गयी- पूरा एक महिना हो गया। आप मेरी बात पर ध्यान नहीं देते। जिस दिन कोई अनहोनी हो जायेगी तब आपकी आँख खुलेगी। कल सण्डे है, इसको किसी अनाथालय में छोड़ आओ.....।

बिना माँ-बाप की अपाहिज और वह भी लड़की.... किसके सहारे छोड़ आऊं.... दुःखी मन से वह अनाथालय के विषय में सोचने लगा। सुबह सवेरे रीना के कोहराम ने घर को सिर पर उठा लिया। मैं कहती थी कुछ अनहोनी होकर रहेगी.... हाय मेरा सारा गहना-कपड़ा चुरा ले गयी लंगड़ी।

दयाशंकर ने देखा अलमारी खुली पड़ी थी, कमरे में सारा सामान बिखरा पड़ा था... रीना की बात न मानकर वह भी पछता रहा था।

'कुछ भी तो नहीं छोड़ा कलमुंही ने.... हाय राम.... चलो उसके कमरे में देखते है, क्या-क्या चुरा कर ले गयी.....। दयाशंकर भी पीछे-पीछे चल पड़ा।

दरवाजा खोलकर देखा तो उसमें सारे गहने कपड़े बिखरे पड़े थे, 'सब लेकर भागने की तैयारी थी पर कुछ भी ले जाने का मौका न लगा..... चलो बिना कुछ लिए चली गयी... पीछा छूटा.....।

दयाशंकर इस घटना के तार जोड़ने में ही उलझा था, तभी रीना ने पीछे मुड़कर देखा.... घीरा दरवाजे के पास मरी पड़ी थी। उसके पेट में गोली मारी गयी थी।

एक क्षण में दयाशंकर ने इस घटना के सभी तार जोड़ लिए। 'रीना रात को कोई चोर आया.... सारा सामान चुराया परन्तु घीरा साहस के साथ उससे लिपट गयी। जब वह चोरों के काबू में न आयी तो उसे गोली मार दी और बिना सामान उठाए भाग गया।'

'हे भगवान, यदि घीरा न होती तो आज कुछ अनहोनी हो ही जाती' रोते हुए रीना अपने पति की सहायता से घीरा को उठाने लगी।

० ० ०

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