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कविता संग्रह >> कामायनी

कामायनी

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :177
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9700

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मनु आंख खोलकर पूछ रहे- ''पथ कौन वहां पहुंचाता है?
उस ज्योतिमयी को देव! कहो कैसे कोई नर पाता है?''

पर कौन वहां उत्तर देता! वह स्वप्न अनोखा भंग हुआ,
देखा तो सुंदर प्राची में अरुणोदय का रस-रंग हुआ।

उस लता-कुंज की झिलमिल से हेमाभरश्मि थी खेल रही,
देवों के सोम-सुधा-रस की मनु के हाथों में बेल रही।

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