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उपन्यास >> खजाने का रहस्य

खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702

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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य

'ठीक है सर, जो आप उचित समझें करें। मैं सदैव आपके साथ छाया की भाँति लगा रहूँगा।'

माधव के उत्तर से डा. साहब सन्तुष्ट हो गये। अपने पलंग के बराबर जल रहा टेबिल-लैम्प बुझाकर वे सो गये।

माधव सोच रहा था- साहब को मेरी कितनी चिन्ता है। मेरे लिए वह सरकार के साथ छल करने को भी तैयार हैं। खैर! यदि वह खजाना कुछ, बड़ा हुआ तो मैं एक शानदार कोठी बनवाऊँगा। खूब नौकर-चाकर रखूँगा, बढ़िया कार खरीद लूँगा। अब तक जो लोग मुझे निपट बातूनी ही समझते रहे हैं, वे भी गुणवान मानने लगेंगे। अहा! मजा आ जायगा। इन्हीं विचारों में खोया हुआ माधव भी निद्रा-देवी की गोद में चला गया।

प्रात: जैसे ही डॉ. साहब सोकर उठे, उन्हें पुरातत्व विभाग के जिला कार्यालय से सूचना मिली कि अजयगढ़ के जिस खण्डहर की खुदाई की जा रही है - उसमें अरबों-खरबों रुपये की सम्पत्ति मिली है। खुदाई जारी है तथा अभी और भी सम्पत्ति मिलने की सम्भावना है।

यह सूचना क्या थी, मानो अमृत-ध्वनि थी। समाचार लाने वाले व्यक्ति से उन्होंने उस बात को बार-बार पूछा और आनन्दमग्न होते रहे।


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