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उपन्यास >> कुसम कुमारी

कुसम कुमारी

देवकीनन्दन खत्री

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :183
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9703

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रहस्य और रोमांच से भरपूर कहानी

बालेसिंह के यहां आज जसवंतसिंह की बड़ी कदर और इज्जत है। फौज का सेनापति होने के सिवाय बालेसिंह उसे जी-जान से मानता है क्योंकि अगर महारानी कुसुम कुमारी की फौज का पता बालेसिंह को वह न देता तो बेशक बालेसिंह की किस्मत फूट ही चुकी थी। एक तो रनबीरसिंह के जख्मी होने से दूसरे जसवंतसिंह के होशियार कर देने से बालेसिंह की जान बच गई। इससे भी बढ़कर जसवंतसिंह ने और एक काम किया था जिससे बालेसिंह बहुत ही खुश है और उसे अपनी जान के बराबर मानता है। इस जगह पर यह कहने की कोई जरूरत नहीं नजर आती कि जसवंत ने वह कौन-सा लासानी काम करके बालेसिंह को मुट्ठी में कर लिया है क्योंकि आगे मौके पर यह बात छिपी न रहेगी।

जसवंतसिंह का समय देखकर बालेसिंह के कुल मुलाजिम फौज और अफसर इसका हुक्म मानते हैं। समझते हैं कि यह जिससे रंज होगा उसके सिर पर आफत आएगी और वह उसी तरह तोप के आगे रखकर उड़ा दिया जाएगा जिस तरह वह जासूस उड़ा दिया गया था जिसने महारानी कुसुम कुमारी के मरने की खबर बालेसिंह को पहुंचाई थी। अस्तु जसवंतसिंह का नाम सुनते ही एक सिपाही कालिंदी के साथ हुआ और उसे जसवंतसिंह के पास पहुंचाकर अपने ठिकाने चला आया।

आसमान पर सफेदी आ रही थी और बुझती हुई चिनगारियों की तरह दस-बीस लुपलुपाते हुए तारे दिखाई दे रहे थे, जब कालिंदी जसवंतसिंह के खेमे के पास पहुंची। पहरेवालों से जाना गया कि वह अभी सो रहा है। साफ सबेरा हो जाने से मालूम हो जाएगा कि यह औरत है इसलिए कालिंदी ने उसी वक्त खेमे के अंदर जाने का इरादा किया, मगर हुक्म के खिलाफ समझकर पहरेवालों ने ऐसा करने से रोक दिया।

कालिंदी–अच्छा तुम अभी जाकर खबर करो कि महारानी का भेजा हुआ एक आदमी आया है।

एक सिपाही–सरकार अभी सो रहे हैं, किसकी मजाल है जो उन्हें जाकर उठावे।

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