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उपन्यास >> नदी के द्वीप

नदी के द्वीप

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9706

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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।


12

गौरा का जवाबी तार, एक प्रति टामस कुक, नकल के. एल. एम. डच लाइन कलकत्ता :

सन्देश डा. भुवन के लिए अनुमानित पहुँच 23 दिसम्बर कृपया पहुँचा दीजिए सन्देश आरम्भ मसूरी प्रतीक्षा करती हूँ सीधे आइये असम्भव हो तो तार दें कहाँ मिलूँ आऊँगी मिलना आवश्यकीय स्नेह पिताजी के आशीर्वाद गौरा सन्देश समाप्त पहुँचने पर या देरी होने पर तार से सूचित कीजिए।
मिस नाथ सुकेत
मसूरी

गौरा का पत्र, भुवन के नाम, उपर्युक्त दोनों पतों पर :

तो आप आ रहे हैं, भुवन दा! मैंने तार दिया है कि आप मसूरी आ जाइये। पापा का स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं है और मैं उनके पास हूँ। फिर भी आती ही-चिन्ता की कोई बात नहीं है-पर आप 23 दिसम्बर को पहुँचते हैं तो कालेज तो तुरत जाना नहीं होगा, इसलिए यहाँ आ सकेंगे यह मैंने मान लिया है। यहाँ आप को भी अच्छा लगेगा, पापा को भी; और मैं भी आपकी सेवा कर सकूँगी-कलकत्ता तो कैसी जगह है...न जाने। पर अगर कोई कठिनाई हुई तो मैं तुरत आऊँगी-कलकत्ते या और जहाँ आप कहें। मैं तैयार बैठूँगी-आप का तार आते ही चल दूँगी। भुवन दा, आप आ रहे हैं, सोच कर मैं पागल हुई जा रही हूँ-इतनी कि उस दुर्घटना को ही धन्य कह देती जिसके कारण आप को जावा छोड़ना पड़ा-पर नहीं, इतना अविवेक नहीं!

ओ मेरे सुख धीरे -धीरे गा अपना मधु-राग
ऊँचे स्वर से सोयी पीड़ा जावे कहीं न जाग ...'
आपकी, आप ही की
गौरा

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