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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


अन्नाकाली ने पानी लाकर कहा-बाबूजी, उठो, पानी पी लो।

गुरुचरण ने उठकर गिलास भर पानी एक ही साँस में पी डाला और कहा--आ:! जा बेटी, गिलास ले जा।

लड़की के चले जाने पर गुरुचरण फिर लेट रहे।

ललिता ने बैठक में आकर कहा-मामा, चाय लाई हूँ, उठो। चाय का नाम सुनकर गुरुचरण फिर उठ बैठे। ललिता के मुख की ओर देखते हो उनके हृदय की आधी ज्वाला जैसे शान्त हो गई। उन्होंने कहा-कल रातभर तुझे जागते ही बीता है बेटी, आ, तनिक मेरे पास आकर बैठ।

ललिता लज्जामिश्रित हास्य के साथ मामा के पास आकर बैठ गई और बोली-मैं रात को बहुत देर तक नहीं जागी थी मामा।

इस जीर्ण-शीर्ण, चिन्ता के भारी भार से दबे हुए, अकाल- वृद्ध मामा के हृदय की छिपी हुई गहरी व्यथा का अनुभव इस संसार में इस लड़की से अधिक और कोई करनेवाला नहीं था।

गुरुचरण ने कहा-अच्छा, ऐसा ही होगा। आ, मेरे पास आ।

ललिता ज्योंही पास आकर बैठी त्योंही गुरुचरण उसके सिर पर हाथ रखकर कह उठे-अपने गरीब दुखिया मामा के घर आकर तुझे दिन-रात मेहनत करनी पड़ती है, क्यों न वेटी? ललिता ने सिर हिलाकर कहा- दिन-रात मेहनत क्यों करनी पडती है मामा? सभी काम करते हैं, मैं भी करती हूँ।- अबकी गुरुचरण हँसे। उन्होंने चाय पीते-पीते कहा-हां ललिता, तो फिर आज रसोई वगैरह का क्या इंतजाम होगा? ललिता ने मामा की ओर देखकर कहा- क्यों मामा, मैं रसोई बनाऊँगी।

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