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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


ललिता का चेहरा पीला पड़ गया। ताश की गड्डी हाथ से रखकर बोली-- शेखर दादा क्या आज दफ्तर नहीं गये?

''क्या मालूम-चले आये हैं'' कहकर गरदन हिलाकर काली चल दी।

ललिता ने भी ताश रख दिये, और मनोरमा की ओर कुण्ठित भाव से देखकर कहा- जाती हूँ मौसी।

मनोरमा ने चट उसका हाथ थाम लिया। बोली- यह कैसे हो सकता है जी; दो-चार हाथ तो और खेल लो। ललिता हड़बड़ाकर उठ खड़ी हुई, और बोली- ना मौसी, देर होने से दादा नाराज हो उठेंगे।

ललिता तेजी के साथ चली गई।

गिरीन्द्र ने पूछा- शेखर दादा कौन है बहन?

मनोरमा- वह जो सामने फाटक देख पड़ता है, उसी बडी इमारत में रहते हैं।

गिरीन्द्र ने गरदन हिलाकर कहा- वह-वह मकान। नवीन बाबू शायद उनके कोई आत्मीय हैं?

मनोरमा ने लड़की के मुंह की ओर देखकर मुसकराकर कहा - आत्मीय कैसे! ललिता के मामा की यह बाप-दादे की झोपड़ी तक तो वह बूढ़ा हड़प लेने की ताक में है।

गिरीन्द्र आश्चर्य-चकित भाव से बहन की ओर ताकने लगा।

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