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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


उस दिन तीसरे पहर मामा वगैरह को चाय देने के लिए बैठके में आते ही ललिता सिटपिटा सी गई। कारण यह था कि आज वहाँ शेखर भी मौजूद था। यात्रा के प्रथम वह गुरुचरण से भेंट करने आया था।

ललिता ने सिर नीचा करके दो प्याली चाय बनाकर गिरीन्द्र के और मामा के आगे रख दी। यह देखकर गिरीन्द्र ने कहा- शेखर बाबू को चाय न दोगी ललिता?

ललिता ने बिना सिर उठाये ही धीमे स्वर में कहा- शेखर दादा नहीं पीते।

गिरीन्द्र ने फिर और कुछ नहीं कहा। ललिता ने शेखर के बारे में एक दिन कहा था कि शेखर खुद भी चाय नहीं पीते, और औरों का भी यह शौक नहीं पसन्द करते। इस समय इसकी गिरीन्द्र को याद हो आई थी।

चाय की प्याली हाथ में लेकर गुरुचरण ने ललिता के लिए देखे गये लड़कों की चर्चा चलाई। आज जिस लड़के को देखने गये थे, उसके बारे में ''लड़का बी० ए० में पढ़ता है, अच्छा है'' इत्यादि कहकर खूब तारीफ करने के बाद अन्त में कहा- फिर भी हमारे गिरीन्द्र को पसन्द नहीं आया। यह जरूर है कि लड़का देखने में वैसा सुन्दर, सुडौल नहीं है, लेकिन मैं तो यही कहूँगा कि मर्द-बच्चे का रूप ब्याह के अलावा और कौन अवसर पर किस काम आता है। मर्द के तो गुण ही देखे जाते हैं।

गुरुचरण तो इतना ही चाहते थे कि किसी तरह लड़की का ब्याह हो जाय। यही बहुत है।

शेखर के साथ गिरीन्द्र का आज यहीं साधारण स्वल्प परिचय हुआ था। गिरीन्द्र की ओर देखकर शेखर ने मन्द हास्यपूर्वक कहा-- गिरीन्द्र बाबू को क्यों नहीं पसन्द हुआ? लड़का पढ़ लिख रहा है, अवस्था भी अच्छी है-यही तो सुपात्र है!

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