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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


प्रत्युत्तर में, शेखर ने कुछ भी न कहा। वह सिर झुकाकर भोजन की सामग्री को हाथ से उठाने-रखने लगा। दम भर बाद मां उठ गई। वह भी उठकर हाथ-मुँह धोकर बिछौने पर आकर लेट रहा।

दूसरे दिन शाम के बाद कुछ दूर घूम आने के लिए शेखर घर से निकला। उस समय गुरुचरण के घर में, बाहर की बैठक के अन्दर, नित्य की चाय पीने की सभा जमी हुई थी। उसमें यथेष्ट उत्साह के साथ हँसने और बातचीत करने का सिलसिला जारी था। वहाँ का शोर-गुल शेखर ने सुना तो उसने ठिठककर कुछ सोचा; और फिर धीरे-धीरे भीतर घुसकर उसी आवाज को लक्ष्य करके गुरुचरण के बैठकखाने में आकर खड़ा हो गया। उसी दम सारा शोर-गुल थम गया। शेखर के चेहरे की ओर देखकर सभी के मुँह का भाव बदल गया।

शेखर के बाहर से लौट आने की खबर सिवा ललिता के और कोई न जानता था। आज वहाँ गिरीन्द्र और एक और भी भले आदमी उपस्थित थे। वे तो विस्मित होकर शेखर की ओर ताकने लगे, और गिरीन्द्र मुख पर अत्यन्त गम्भीरता का भाव लाकर दीवार की ओर देखने लगा। उस समय सबसे अधिक चिल्लाकर बातें कर रहे थे खुद गुरुचरण ही; उनका चेहरा शेखर को देखकर बिलकुल पीला पड़ गया। उनके पास बैठी ललिता चाय तैयार कर रही थी; उसने एक बार सिर उठाकर देखा, और फिर झुका लिया।

शेखर ने आगे बढ़कर तख्त के ऊपर सिर रखकर प्रणाम किया और फिर उसी के ऊपर एक किनारे बैठकर हँसते-हँसते कहा- यह क्या, एकदम सन्नाटा क्यों पड़ गया!

गुरुचरण ने बहुत धीमे स्वर में शायद आशीर्वाद दिया; किन्तु क्या आशीर्वाद दिया, यह कुछ समझ न पड़ा।

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