लोगों की राय

उपन्यास >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

286 पाठक हैं

हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


“ऐसा ही हुआ है लेकिन कल रात को आपका निराहार रहना मैं नहीं भूली।”

अपूर्व बोला, “देर करने के लिए अब समय नहीं है। बेचारा तिवारी परेशान हो रहा होगा।”

भारती बोली, “नहीं हो रहा। आपके जागने से पहले ही उसे आपकी कुशलता की सूचना मिल चुकी है।”

“उसे क्या पता कि मैं यहा हूं?”

“पता है। मैंने आदमी भेज दिया था।”

यह सुनकर अपूर्व के मन पर से भारी बोझ उतर गया। तिवारी और जो कुछ भी क्यों न करे, लेकिन भारती के मुंह से निकली बात पर मर जाने की स्थिति में भी अविश्वास नहीं करेगा। प्रसन्न होकर अपूर्व बोला, “आपकी नजर चारों ओर रहती है। घर पर भाभी को भी देखा है। मां को भी देखा है लेकिन हर ओर जिसकी दृष्टि रहे, ऐसा कोई नहीं देखा। सच कहता हूं, आप जिस घर की स्वामिनी होंगी उस घर के लोग आंखें मूंदकर दिन बिताएंगे। किसी को कभी कोई कष्ट नहीं उठाना पड़ेगा।”

भारती के चेहरे पर बिजली-सी दौड़ गई। अपूर्व ने इसे नहीं देखा। वह पीछे-पीछे आ रहा था।

“इस पराए देश में आप न होतीं तो मेरी क्या दशा होती बताइए तो? सब कुछ चोरी हो जाता। शायद तिवारी कमरे में ही मर जाता। ब्राह्मण के लड़के को डोम-मेहतर खींचकर उठाते। मैं भी क्या रह पाता? नौकरी छोड़कर शायद चला जाना पड़ता। उसके बाद वही स्थिति। भाभियों की गर्जना और मां की आंखों के आंसू। आप ही तो सब कुछ हैं। सब कुछ बचा दिया आपने।”

“फिर भी आपने आते ही मेरे साथ झगड़ा मचा दिया था।”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book