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उपन्यास >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


अपूर्व ने कहा, “जो गरजता है बरसता नहीं है।”

तिवारी बोला, “हम लोगों का डेरे में अधिक दिन रहना नहीं हो सकेगा। साले, सब कुछ खाते-पीते हैं। याद आते ही....।”

“चुप रह तिवारी,” वह उस समय भोजन कर रहा था। बोला, “इसी महीने के बाद छोड़ देंगे। लेकिन अच्छा मकान तो मिले।”

उसी दिन शाम को ऑफिस से लौटकर तिवारी की ओर देखकर अपूर्व स्तब्ध रह गया। इतनी ही देर में वह जैसे सूखकर आधा हो गया था। पूछा, “क्या हुआ तिवारी?”

प्रत्युत्तर में उसने बादामी रंग के कुछ कागज अपूर्व को पकड़ा दिए। फौजदारी अदालत का सम्मन था। वादी जे. डी. जोसेफ थे और प्रतिवादी तीन नम्बर कमरे का अपूर्व नामक बंगाली और उसका नौकर था। दोपहर को कचहरी का चपरासी दे गया था।

चपरासी के साथ वही साहब आया था। परसों हाजिर होने की तारीख है। अपूर्व ने कागज पढ़कर कहा, “कोर्ट में देखा जाएगा।”

यह कहकर वह कपड़े बदलने कमरे में चला गया।

तारीख वाले दिन तिवारी को साथ लेकर अपूर्व अदालत में हाजिर हुआ। इस विषय में रामदास से सहायता लेने में उसे लज्जा अनुभव हुई। केवल जरूरी काम का बहाना करके उसने एक दिन की छुट्टी ले ली थी।

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