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उपन्यास >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


“नहीं बेटा, इतना आसान काम नहीं है। मुझे पूरा विश्वास है कि अंतिम पल में वह किसी और रास्ते से खिसक गया होगा।”

“और अगर वह आ जाए तो?”

निमाई बाबू ने कुछ सोचकर कहा, “उस पर बराबर नजर रखने का आदेश मिला है, दो दिन देखता हूं। पकड़ने की अपेक्षा जांच करना जरूरी है। सरकार का यही विचार है।”

अपूर्व इस बात पर विश्वास न कर सका। क्योंकि वह उसके लिए जो कुछ भी हों फिर भी हैं तो पुलिस के आदमी! उसने पूछा, “उनकी उम्र क्या है?”

“लगभग तीस-बत्तीस की होगी।”

“देखने में कैसे हैं?”

“यही तो आश्चर्य है बेटा! अत्यंत साधारण मनुष्य है। इसीलिए तो पहचानना कठिन है। पकड़ना भी कठिन है। हम लोगों की रिपोर्ट में यही बात विशेष रूप से लिखी हुई है।”

अपूर्व बोला, “लेकिन पकड़े जाने के भय से ही तो यह पैदल वन लांघकर आए हैं।”

निमाई बाबू बोले, “हो सकता है, कोई विशेष उद्देश्य हो। हो सकता है इस रास्ते को भी जान लेना चाहता हो। कुछ भी नहीं कहा जा सकता अपूर्व! यह लोग जिस पथ के पथिक हैं उसमें साधारण मनुष्य के विचार के साथ इनके विचार मेल नहीं खाते। आज इसकी भूल है या हम लोगों की भूल है-इसकी परीक्षा होने वाली है। ऐसा भी सम्भव है कि हम लोगों की सारी दौड़-धूप व्यर्थ हो जाए।”

अपूर्व बोला, “ऐसा ही हो तो अच्छा है। मैं अन्त:करण से यही प्रार्थना करता हूं चाचा जी!”

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