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उपन्यास >> पिया की गली

पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


"तुम उसके कमरे में नहीं जाओगे।“ पिता जी ने कड़क कर कहा, "इसके पास तुम्हारी माँ है और सब लोग हैं परन्तु तुम नहीं जाओगे।"

“मां? माँ को वहाँ क्यों भेजा? माँ की आँखों पर बडी़ भाभियों की पट्टी बँधी हैं। वह सब उसे मार डालेंगी। मैं जाऊँगा।“

"नन्दी तुम्हें मेरा हुकुम टालने की मजाल कैसे होती है? यह मेरा आखिरी हुक्म हैं तुम उसके कमरे में नहीं जाओगे।"

बाहर बादल जो़रदार आवाज से गरजे।

कहीं बिजली जा गिरी।

"नहीं पिता जी, ऐसा हुकुम न दीजिये जो मैं मान न सकूँ।“

पिता जी गुस्से से काँपने लगे "तुम.....तुम सब की आँखों में इस तरह धूल झोक सकते हो परन्तु मुझे धोखा नहीं दे सकते हो निर्ल्लज। मैं अपने घर में यह तमाशा नहीं देख सकता। तुम....तुम.....।"

“पिता जी।" वह चीख उठा। “मुझे इतनी बडी़ गाली न दीजिये, वरना....।“

बादल औऱ जो़र से गरज उठे और आकाश टूट कर कहीं जा गिरा।

औऱ तब सभी ने देखा पिता जी के हाथ में जो आया उन्होंने नन्दी को मारने के लिए उठा लिया।

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