उपन्यास >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
कार रुक गई।
दो हाथ उसे नीचे उतार रहे हैं।
वही हाथ....वही हाथ।
वही हाथ जिनके स्पर्श से कल ब्याह मण्डप में ह्रदय इस तरह कँपकपाया था।
वही हाथ......वही हाथ।
वह उन हाथों का सहारा लेकर नीचे उतर आई है।
हजारों आँखें उसके रास्ते में बिछी हैं। सभी उसे देखने के लिए ब्याकुल हैं। कितनी ही औरतों ने उसे अपने साथ लिपटा लिया है।
अन्दर जाने से पहले उसकी आरती उतारी जा रही है। उससे कहा जा रहा है कि वह उन पैरों को छुये जिसके हाथों में जलते हुए चिरागों की थाली है।
उसने उन पैरों को छू लिया है।
ये उसकी सास हैं।
सास ने उसे अपने साथ लिपटा लिया है और प्यार से कहा है, "मेरी बच्ची, डरो नही, आओ मेरे साथ।"
मानों चारों ओर से प्यार का सागर लहरें मार-मार कर उमड़ आया हो।
वह उन स्नेहिल बाहों में लिपटी हैं।
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