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धर्म एवं दर्शन >> श्रीकनकधारा स्तोत्र

श्रीकनकधारा स्तोत्र

आदि शंकराचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :13
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9723

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लक्ष्मी आराधना के स्तोत्र

9723_SriKanakDharaStotra_by_AdiShankaracharya आदिजगद्गुरु भगवान श्रीशंकराचार्य द्वारा विरचित इस कनकधारा स्तोत्र का नित्य त्रिकाल (प्रातः-मध्यान्ह-सायम्) पाठ करने से साधक को विपुल धनधान्य की प्राप्ति होती है, सभी प्रकार की दीनता, दरिद्रता, दुर्भाग्य, दुःख-क्लेश, आधिव्याधि आदि विपत्तियां मिट जाती हैं।

सहस्रों साधकों के द्वारा अनुभूत अत्यन्त चमत्कारी स्तोत्र है।


श्रीकनकधारास्तोत्रम्


अंगं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृंगांगनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अंगीकृताखिलविभूतिरपांगलीला
मांगल्यदाऽस्तु मम मंगलदेवतायाः
1

जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमालतरु का आश्रय लेती है उसी प्रकार जो श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरन्तर पड़ती रहती है तथा जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, वह सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की कटाक्षलीला मेरे लिये मंगलदायिनी हो।।1।।

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः


जैसे भ्रमरी महान् कमलदल पर आती–जाती या मँडराती रहती है, उसी प्रकार जो मुरशत्रु श्रीहरि के मुखारविन्द की ओर बारंबार प्रेम पूर्वक जाती और लज्जा के कारण लौट आती है, वह समुद्रकन्या लक्ष्मीजी की मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन सम्पत्ति प्रदान करे।।2।।

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