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वीर बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9731

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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ



वीर बालक स्कन्दगुप्त


हूण, शक आदि मध्य एशिया की मरुभूमि में रहनेवाली बर्बर जातियाँ हैं; जो वहाँ पाँचवीं शताब्दी में थीं। हूण और शक जाति के लोग बड़े लड़ाकू योद्धा और निर्दय थे। इन लोगों ने यूरोप को अपने आक्रमणों से बहुत बार उजाड़-सा दिया। रोम का बड़ा भारी राज्य उनकी चढ़ाइयों से नष्ट हो गया। चीन को भी अनेकों बार इन लोगों ने लूटा। ये लोग बड़ी भारी सेना लेकर जिस देश पर चढ़ जाते थे वहाँ हाहाकार मच जाता था।

एक बार समाचार मिला कि बड़ी भारी हूणों की सेना हिमालय पर्वत के उस पार भारत पर आक्रमण करने के लिये इकट्ठी हो रही है। उस समय भारत में सबसे बड़ा मगध का राज्य था। वहाँ के सम्राट कुमारगुप्त थे। उनके पुत्र युवराज स्कन्दगुप्त उस समय तरुण नहीं हुए थे। हूणों की सेना एकत्र होने का जैसे ही समाचार मिला, स्कन्दगुप्त अपने पिता के पास दौड़े हुए गये। सम्राट कुमारगुप्त अपने मन्त्रियों और सेनापतियों के साथ उस समय हूणों से युद्ध करने की सलाह कर रहे थे। स्कन्दगुप्त ने पिता से कहा कि 'मैं भी युद्ध करने जाऊँगा।'

महाराज कुमारगुप्त ने बहुत समझाया कि 'हूण बहुत पराक्रमी और निर्दय होते हैं। वे अधर्म पूर्वक छिपकर भी लड़ते हैं और उनकी संख्या भी अधिक है। उनसे लड़ना तो मृत्यु से ही लड़ना है।'

लेकिन युवराज स्कन्दगुप्त ऐसी बातों से डरने वाले नहीं थे। उन्होंने कहा- 'पिताजी! देश और धर्म की रक्षा के लिये मर जाना तो वीर क्षत्रिय के लिये बड़े मंगल की बात है। मैं मृत्यु से लडूँगा और अपने देश को कूर शत्रुओं द्वारा लूटे जाने से बचाऊँगा।'

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