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वीर बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9731

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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ



वीर बालक प्रताप


यह महाराणा प्रताप की बात नहीं है। यह तो चित्तौड़ के एक साधारण राजपूत बालक की बात है। उसका नाम प्रताप था। उसे गाना-बजाना बहुत पसंद था। उसके माता-पिता और मित्र उससे प्रसन्न नहीं रहते थे। सब लोग उसे डाँटते और चिढ़ाते थे कि राजपूत के लड़के होकर तुम तलवार चलाना नहीं सीखते हो। देश पर जब संकट आवेगा, तब तुम अपने कर्तव्य का कैसे पालन करोगे? देश की सेवा न करे, देश के लिये मर-मिटने को तैयार न हो, ऐसा राजपूत भी क्या किसी काम का मनुष्य है? प्रताप उन लोगों से कहा करता था- 'देश की सेवा केवल तलवार से नहीं होती। संगीत से भी देश की सेवा हो सकती है। काम पडने पर मैं बता दूँगा कि देशके लिये मर मिटने में मैं किसी से पीछे नहीं हूँ।’

किसी को प्रताप की बात ठीक नहीं लगती थी। लोग समझते थे कि यह सुकुमार तो है ही, डींग हाँकने वाला भी है। प्रताप भी अपनी धुन का ऐसा पक्का था कि वह किसी की बात पर ध्यान ही नहीं देता था।

दिल्ली में उन दिनों मुगल बादशाह थे। मुगलों की बड़ी भारी सेना ने चित्तौड़ पर चढ़ाई कर दी। लेकिन चित्तौड़ का किला इतना दृढ़ था कि मुगल-सेना उसपर विजय नहीं पा सकती थी।

मुगल सेनापति ने सोचा था कि प्रताप के गीत सुनकर किले के भीतर के लोग समझेंगे कि उनकी सहायता के लिये कोई दूसरी राजपूत सेना आयी है। इस धोखे में वे किले का फाटक खोल देंगे। प्रताप मुगल-सेनापति की चालाकी समझ गया। उसने ऐसा गीत गाना प्रारम्भ किया कि उसे सुनकर किले के राजपूत सावधान हो गये। उन्होंने मुगल-सेना पर पत्थरों और तीरों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। बहुत-से सैनिक मारे गये। मुगल-सेनापति ने डाँटते हुए प्रताप से पूछा- 'लड़के! तू क्या गा रहा है?'

प्रताप ने बड़ी निर्भयता से कहा- 'मैं गीत में अपने वीरों से कह रहा हूँ कि शत्रु द्वार पर खड़ा है। सोओ मत। धोखे में मत आओ। किला मत खोलो! पत्थर मारो, पत्थर! शत्रु का कचूमर निकाल लो।'

मुगल-सेनापति ने प्रताप का सिर एक झटके में काट दिया; किंतु राजपूत सावधान हो गये थे, मुगल-सेना को निराश होकर लौट जाना पड़ा। दूसरे दिन राजपूतों को प्रताप की लाश मिली। देश पर प्राण देनेवाले उस वीर बालक की देह को स्वयं महाराणा ने अपने हाथों चिता पर रखा।

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