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वीर बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :94
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9731

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वीर बालकों के साहसपूर्ण कृत्यों की मनोहारी कथाएँ



वीर बालक जालिमसिंह


मुर्शिदाबाद में नवाब सरफराज खाँ की अमलदारी थी। उन दिनों की यह बात है। वह जनता का प्रेम प्राप्त नहीं कर सके थे। इससे उसके विरुद्ध एक षदयन्त्र रचा गया। षडयन्त्र रचनेवाला अलीवर्दी खाँ था। एक बड़ी सेना लेकर वह उसके मुकाबले गया। सरफराज खाँ घबरा गया, परंतु अब लडने के सिवा छुटकारा न था।

दोनों सेनाएँ गिरिया के प्रसिद्ध मैदान में पड़ाव डाले पड़ी थीं। बीच में कलकल-ध्वनि करती भागीरथी गंगा नदी बह रही थी। दोनों किनारे तंबू खड़े थे। उन तंबुओं की सफेद परछाईं भागीरथी के जल में पड़कर सुन्दर छटा दिखला रही थी।

रात बीत गयी। सबेरा हुआ। चारों ओर उजाला हो गया। सूरज उगने के पहले ही लड़ाई का बाजा बज गया। सैनिक लडाई के मैदान में आकर खड़े हो गये और लड़ाई होने लगी।

सरफराज खाँ हाथी पर बैठा था। उसका प्रधान सेनापति मारा गया था। इससे वह वीरतापूर्वक लडाई में आगे बढ़ता जाता था। इतने में उसे गोली लगी और वह गिर पड़ा। मुर्शिदाबाद के नवाब की सेना में केवल सरफराज खाँ ने ही प्राणों से हाथ धोया।

विजयसिंह नामक एक राजपूत योद्धा था। सेना के पिछले भाग की रक्षा का भार उसके ऊपर था। वह गिरिया के पास खमरा नाम के स्थान में था। उसने अपने मालिक के मरने का समाचार सुना। तुरंत ही वह अलीवर्दी खाँ के सामने झपटा। अपने मालिक की मौत से राजपूत वीर का खून खौल उठा। उसने अपना एक भाला कसकर अलीवर्दी खाँ के ऊपर फेंका; परंतु उसके पहले गोलंदाज सैनिक ने एक गोली विजयसिंह को मारी। वह वहाँ ही ढेर हो गया। गिरिया के युद्धमें उसने अपना शरीर-त्याग किया।

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